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Wednesday, September 7, 2011

कालीदास

रति रैन विषै जे रहे हैँ पति सनमुख,
तिन्हैँ बकसीस बकसी है मैँ बिहँसि कै।
करन को कँगन उरोजन को चन्द्रहार,
कटि को सुकिँकनी रही है कटि लसि कै।
कालिदास आनन को आदर सोँ दीन्होँ पान,
नैनन को काजर रह्यो है नैन बसि कै।
एरी बैरी बार ये रहे हैँ पीठ पाछे यातेँ,
बार बार बाँधति हौँ बार बार कसि कै।

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