1: मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
तुम ऍम ऐ फर्स्ट डिविजन हो, मैं हुआ मेट्रिक फेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
तुम फौजी अफसर की बेटी , मैं तो किसान का बेटा हूँ
तुम रबडी खीर मलाई हो, मै तो सत्तू सपरेटा हूँ
तुम ऐ-सी घर में रहती हो, मैं पेड के नीचे लेटा हूँ
तुम नई मारुती लगती हो, मै स्कूटर लम्ब्रेटा हूँ
इस कदर अगर हम छुप छुप कर, आपस में प्यार बढ़ाएँगे
तो एक रोज तेरे डेडी, अमरीश पुरी बन जाएँगे
सब हड्डी पसली तोड़ मुझे वो भिजव देंगे जेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
तुम अरब देश की घोड़ी हो, मैं हूँ गदहे की नाल प्रिये
तुम दीवाली का बोनस हो, मै भूखों की हड़ताल प्रिये
तुम हीरे जडी तश्तरी हो, मैं एल्युमिनिअम का थाल प्रिये
तुम चिकन सूप बिरयानी हो, मैं कंकड वाली दाल प्रिये
तुम हिरन चौकड़ी भरती हो, मै हू कछुए की चाल प्रिये
तुम चंदन वन की लकड़ी हो, मैं हू बबूल की छाल प्रिये
मै पके आम सा लटका हूँ मत मारो मुझे गुलेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
मै शनी देव जैसा कुरूप, तुम कोमल कन्चन काया हो
मै तन से मन से कांशी राम, तुम महा चंचला माया हो
तुम निर्मल पावन गंगा हो, मैं जलता हुआ पतंगा हूँ
तुम राज घाट का शांति मार्च, मै हिन्दू मुस्लिम दंगा हूँ
तुम हो पूनम का ताजमहल, मै काली गुफा अजन्ता की
तुम हो वरदान विधाता का, मैं गलती हूँ भगवंता की
तुम जेट विमान की शोभा हो, मैं बस की ठेलमठेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
तुम नई विदेशी मिक्सी हो, मै पत्थर का सिलबट्टा हूँ
तुम ए. के. सैतालिस जैसी, मैं तो एक देसी कट्टा हूँ
तुम चतुर राबडी देवी सी, मै भोला भाला लालू हूँ
तुम मुक्त शेरनी जंगल की, मै चिड़िया घर का भालू हूँ
तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सी, मैं वीपी सिंह सा खाली हूँ
तुम हँसी माधुरी दीक्षित की, मैं हवलदार की गाली हूँ
कल जेल अगर हो जाये तो, दिलवा देना तुम ‘बेल’ प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
मैं ढाबे के ढाँचे जैसा, तुम पाँच सितार होटल हो
मैं महुए का देसी ठर्रा, तुम ‘रेड लेबल’ की बोतल हो
तुम चित्रहार का मधुर गीत, मै कृषि दर्शन की झाड़ी हूँ
तुम विश्व सुन्दरी सी कमाल, मैं तेलिया छाप कबाड़ी हूँ
तुम सोनी का मोबाइल हो, मैं टेलीफोन वाला चोगा
तुम मछली मनसरोवर की, मैं हूँ सागर तट का घोंघा
दस मंजिल से गिर जाऊँगा, मत आगे मुझे धकेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
तुम सत्ता की महारानी हो, मैं विपक्ष की लचारी हूँ
तुम हो ममता, जयललिता सी, मैं कुआँरा अटल बिहारी हूँ
तुम तेंदुलकर का शतक प्रिये, मैं फालो-ऑन की पारी हूँ
तुम गेट्ज, मारुती , सैंट्रो हो, मैं लेलैंड की लारी हूँ
मुझको रेफ्री ही रहने दो, मत खेलो मुझसे खेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये……
अज्ञात
2: बदनीयतों की चाल, परिन्दे को क्या पता
फैला कहाँ है जाल, परिन्दे को क्या पता
लोगों के, कुछ लज़ीज़, निवालों के वास्ते
उसकी खिंचेगी खाल, परिन्दे को क्या पता
इक रोज़ फिर उड़ेगा कि मर जाएगा घुटकर
इतना कठिन सवाल, परिन्दे को क्या पता
पिंजरा तो तोड़ डाला था, पर था नसीब में
उससे भी बुरा हाल, परिन्दे को क्या पता
देखा है जब से एक कटा पेड़ कहीं पर
है क्यूं उसे मलाल, परिन्दे को क्या पता
उड़ कर हजारों मील इसी झील किनारे
क्यूं आता है हर साल, परिन्दे को क्या पता
एक-एक कर के सूखते ही जा रहे हैं क्यों
सब झील नदी ताल, परिन्दे को क्या पता
एक कदम पीछे देखने पर
सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये
किसी को इतना अपना न बना
कि उसे खोने का डर लगा रहे
इसी डर के बीच एक दिन ऐसा न आये
तु पल पल खुद को ही खोने लगे
किसी के इतने सपने न देख
के काली रात भी रंगीली लगे
आंख खुले तो बर्दाश्त न हो
जब सपना टूट टूट कर बिखरने लगे
किसी को इतना प्यार न कर
के बैठे बैठे आंख नम हो जाये
उसे गर मिले एक दर्द
इधर जिन्दगी के दो पल कम हो जाये
किसी के बारे मे इतना न सोच
कि सोच का मतलब ही वो बन जाये
भीड के बीच भी
लगे तन्हाई से जकडे गये
किसी को इतना याद न कर
कि जहा देखो वोही नज़र आये
राह देख देख कर कही ऐसा न हो
जिन्दगी पीछे छूट जाये
ऐसा सोच कर अकेले न रहना,
किसी के पास जाने से न डरना
न सोच अकेलेपन मे कोई गम नही,
खुद की परछाई देख बोलोगे "ये हम नही"
मुद्दत होयी एक शख्स को बिछ्ड़े लेकिन
आज तक मेरे दिल पे एक निशाँ बाक़ी है
वो आशियाँ छिन गया तो कोई गम नही
अभी तो मेरे सिर पे ये आसमान बाक़ी है
कश्ती ज़रा किनारे के करीब ही रखना
बिखरी हुई लहरों में अभी तूफान बाक़ी है
तुम्हारे ही अश्कों ने लब भर दिए वर्ना
अभी तो मेरे दुखों कि दास्ताँ बाक़ी है
गमों से कह दो कि अभी ना अपना सामान बांधें
कि अभी तो मरे जिस्म में कुछ ओर जान बाक़ी है……..
जा चुके हैं सब लोग खामोश पडी है बस्ती
मगर किसी आस पे…अभी कुछ सांस बाक़ी है…
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
तुम ऍम ऐ फर्स्ट डिविजन हो, मैं हुआ मेट्रिक फेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
तुम फौजी अफसर की बेटी , मैं तो किसान का बेटा हूँ
तुम रबडी खीर मलाई हो, मै तो सत्तू सपरेटा हूँ
तुम ऐ-सी घर में रहती हो, मैं पेड के नीचे लेटा हूँ
तुम नई मारुती लगती हो, मै स्कूटर लम्ब्रेटा हूँ
इस कदर अगर हम छुप छुप कर, आपस में प्यार बढ़ाएँगे
तो एक रोज तेरे डेडी, अमरीश पुरी बन जाएँगे
सब हड्डी पसली तोड़ मुझे वो भिजव देंगे जेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
तुम अरब देश की घोड़ी हो, मैं हूँ गदहे की नाल प्रिये
तुम दीवाली का बोनस हो, मै भूखों की हड़ताल प्रिये
तुम हीरे जडी तश्तरी हो, मैं एल्युमिनिअम का थाल प्रिये
तुम चिकन सूप बिरयानी हो, मैं कंकड वाली दाल प्रिये
तुम हिरन चौकड़ी भरती हो, मै हू कछुए की चाल प्रिये
तुम चंदन वन की लकड़ी हो, मैं हू बबूल की छाल प्रिये
मै पके आम सा लटका हूँ मत मारो मुझे गुलेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
मै शनी देव जैसा कुरूप, तुम कोमल कन्चन काया हो
मै तन से मन से कांशी राम, तुम महा चंचला माया हो
तुम निर्मल पावन गंगा हो, मैं जलता हुआ पतंगा हूँ
तुम राज घाट का शांति मार्च, मै हिन्दू मुस्लिम दंगा हूँ
तुम हो पूनम का ताजमहल, मै काली गुफा अजन्ता की
तुम हो वरदान विधाता का, मैं गलती हूँ भगवंता की
तुम जेट विमान की शोभा हो, मैं बस की ठेलमठेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
तुम नई विदेशी मिक्सी हो, मै पत्थर का सिलबट्टा हूँ
तुम ए. के. सैतालिस जैसी, मैं तो एक देसी कट्टा हूँ
तुम चतुर राबडी देवी सी, मै भोला भाला लालू हूँ
तुम मुक्त शेरनी जंगल की, मै चिड़िया घर का भालू हूँ
तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सी, मैं वीपी सिंह सा खाली हूँ
तुम हँसी माधुरी दीक्षित की, मैं हवलदार की गाली हूँ
कल जेल अगर हो जाये तो, दिलवा देना तुम ‘बेल’ प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
मैं ढाबे के ढाँचे जैसा, तुम पाँच सितार होटल हो
मैं महुए का देसी ठर्रा, तुम ‘रेड लेबल’ की बोतल हो
तुम चित्रहार का मधुर गीत, मै कृषि दर्शन की झाड़ी हूँ
तुम विश्व सुन्दरी सी कमाल, मैं तेलिया छाप कबाड़ी हूँ
तुम सोनी का मोबाइल हो, मैं टेलीफोन वाला चोगा
तुम मछली मनसरोवर की, मैं हूँ सागर तट का घोंघा
दस मंजिल से गिर जाऊँगा, मत आगे मुझे धकेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
तुम सत्ता की महारानी हो, मैं विपक्ष की लचारी हूँ
तुम हो ममता, जयललिता सी, मैं कुआँरा अटल बिहारी हूँ
तुम तेंदुलकर का शतक प्रिये, मैं फालो-ऑन की पारी हूँ
तुम गेट्ज, मारुती , सैंट्रो हो, मैं लेलैंड की लारी हूँ
मुझको रेफ्री ही रहने दो, मत खेलो मुझसे खेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये……
अज्ञात
2: बदनीयतों की चाल, परिन्दे को क्या पता
फैला कहाँ है जाल, परिन्दे को क्या पता
लोगों के, कुछ लज़ीज़, निवालों के वास्ते
उसकी खिंचेगी खाल, परिन्दे को क्या पता
इक रोज़ फिर उड़ेगा कि मर जाएगा घुटकर
इतना कठिन सवाल, परिन्दे को क्या पता
पिंजरा तो तोड़ डाला था, पर था नसीब में
उससे भी बुरा हाल, परिन्दे को क्या पता
देखा है जब से एक कटा पेड़ कहीं पर
है क्यूं उसे मलाल, परिन्दे को क्या पता
उड़ कर हजारों मील इसी झील किनारे
क्यूं आता है हर साल, परिन्दे को क्या पता
एक-एक कर के सूखते ही जा रहे हैं क्यों
सब झील नदी ताल, परिन्दे को क्या पता
3: किसी के इतने पास न जा
के दूर जाना खौफ़ बन जायेएक कदम पीछे देखने पर
सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये
किसी को इतना अपना न बना
कि उसे खोने का डर लगा रहे
इसी डर के बीच एक दिन ऐसा न आये
तु पल पल खुद को ही खोने लगे
किसी के इतने सपने न देख
के काली रात भी रंगीली लगे
आंख खुले तो बर्दाश्त न हो
जब सपना टूट टूट कर बिखरने लगे
किसी को इतना प्यार न कर
के बैठे बैठे आंख नम हो जाये
उसे गर मिले एक दर्द
इधर जिन्दगी के दो पल कम हो जाये
किसी के बारे मे इतना न सोच
कि सोच का मतलब ही वो बन जाये
भीड के बीच भी
लगे तन्हाई से जकडे गये
किसी को इतना याद न कर
कि जहा देखो वोही नज़र आये
राह देख देख कर कही ऐसा न हो
जिन्दगी पीछे छूट जाये
ऐसा सोच कर अकेले न रहना,
किसी के पास जाने से न डरना
न सोच अकेलेपन मे कोई गम नही,
खुद की परछाई देख बोलोगे "ये हम नही"
4: डूब रही हैं साँसे मगर ये गुमान बाक़ी है
आने का किसी शख्स के अभी उम्मीद बाक़ी हैमुद्दत होयी एक शख्स को बिछ्ड़े लेकिन
आज तक मेरे दिल पे एक निशाँ बाक़ी है
वो आशियाँ छिन गया तो कोई गम नही
अभी तो मेरे सिर पे ये आसमान बाक़ी है
कश्ती ज़रा किनारे के करीब ही रखना
बिखरी हुई लहरों में अभी तूफान बाक़ी है
तुम्हारे ही अश्कों ने लब भर दिए वर्ना
अभी तो मेरे दुखों कि दास्ताँ बाक़ी है
गमों से कह दो कि अभी ना अपना सामान बांधें
कि अभी तो मरे जिस्म में कुछ ओर जान बाक़ी है……..
जा चुके हैं सब लोग खामोश पडी है बस्ती
मगर किसी आस पे…अभी कुछ सांस बाक़ी है…
5:
दो न्याय अगर तो आधा दो, और, उसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे!
लेकिन दुर्योधन
दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशीष समाज की दे न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला।
हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले-
'जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।
यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल।
सब जन्म मुझी से पाते हैं,
फिर लौट मुझी में आते हैं।
यह देख जगत का आदि-अन्त, यह देख, महाभारत का रण,
मृतकों से पटी हुई भू है,
पहचान, कहाँ इसमें तू है।
तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे!
लेकिन दुर्योधन
दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशीष समाज की दे न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला।
हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले-
'जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।
यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल।
सब जन्म मुझी से पाते हैं,
फिर लौट मुझी में आते हैं।
यह देख जगत का आदि-अन्त, यह देख, महाभारत का रण,
मृतकों से पटी हुई भू है,
पहचान, कहाँ इसमें तू है।
6:
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
ओ रे बिस्मिल काश आते आज तुम हिन्दोस्तां
देखते कि मुल्क सारा यूँ टशन में थ्रिल में है
आज का लौंडा तो कहता हम तो बिस्मिल थक गए
अपनी आज़ादी तो भैया लौंडिया के दिल में है
आज के जलसों में बिस्मिल एक गूंगा गा रहा
और बहरों का वो रेला नाचता महफ़िल में है
हाथ की खादी बनाने का ज़माना लद गया
आज तो चड्डी भी सिलती इंग्लिसों की मिल में है
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है
मुल्क़ ने हर शख़्स को जो काम था सौंपा
उस शख़्स ने उस काम की माचिस जला के छोड़ दी
बनता था तैरने में उस्ताद शहर का
कर गोमती को पार तेरी माँ का ___
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
ओ रे बिस्मिल काश आते आज तुम हिन्दोस्तां
देखते कि मुल्क सारा यूँ टशन में थ्रिल में है
आज का लौंडा तो कहता हम तो बिस्मिल थक गए
अपनी आज़ादी तो भैया लौंडिया के दिल में है
आज के जलसों में बिस्मिल एक गूंगा गा रहा
और बहरों का वो रेला नाचता महफ़िल में है
हाथ की खादी बनाने का ज़माना लद गया
आज तो चड्डी भी सिलती इंग्लिसों की मिल में है
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है
मुल्क़ ने हर शख़्स को जो काम था सौंपा
उस शख़्स ने उस काम की माचिस जला के छोड़ दी
बनता था तैरने में उस्ताद शहर का
कर गोमती को पार तेरी माँ का ___
7:
मै नास्तिक हूँ,..........
मै नास्तिक हूँ,.........
मै नास्तिक हूँ,
क्यूंकि मै अपनी सफलता का क्ष्रेय नही देता उस मूर्ति को,
जिसे बनाया है हममे से ही किसी शक्श ने,
मै नास्तिक हूँ,
क्यूंकि मै परीक्षा देने से पहले दीपक नही जलाता पत्थरों के आगे,
कथा यज्ञ और पूजा मी हिस्सा नही लेता,
हो सकता है की मै नास्तिक ही हूँ,
क्यूंकि और आस्तिको की तरह,
नही देता हूँ भूखो को गाली,
मै सीता की बजाय झाँसी की रानी को पसंद करता हूँ,
क्यूंकि देखा है सीताओं को अग्नि परीक्षा देते हुए,
यदि रामायण पड़कर, और आस्तिक होकर,
पत्नी को धोखा और पिता को वृधाश्रम मे रखना है,
तो मै खुश हूँ की मै नास्तिक ही हूँ...
मै नास्तिक हूँ,.........
मै नास्तिक हूँ,
क्यूंकि मै अपनी सफलता का क्ष्रेय नही देता उस मूर्ति को,
जिसे बनाया है हममे से ही किसी शक्श ने,
मै नास्तिक हूँ,
क्यूंकि मै परीक्षा देने से पहले दीपक नही जलाता पत्थरों के आगे,
कथा यज्ञ और पूजा मी हिस्सा नही लेता,
हो सकता है की मै नास्तिक ही हूँ,
क्यूंकि और आस्तिको की तरह,
नही देता हूँ भूखो को गाली,
मै सीता की बजाय झाँसी की रानी को पसंद करता हूँ,
क्यूंकि देखा है सीताओं को अग्नि परीक्षा देते हुए,
यदि रामायण पड़कर, और आस्तिक होकर,
पत्नी को धोखा और पिता को वृधाश्रम मे रखना है,
तो मै खुश हूँ की मै नास्तिक ही हूँ...
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