खींच कर आकाश धरती पर झुका दो साथियों,
चीर सीना पर्वतों का गंगा बहा दो साथियों;
कांप उठे दश दिशायें एक ही हुंकार से,
भींच कर प्राणों को रणसिंघा बजा दो साथियों।
चल पड़ो तो कोई अड़चन राह में आए नहीं,
अड़चनों को राह से हटना सिखा दो साथियों;
कामयाबी ख़ुद-ब-ख़ुद चूमे क़दम ऐ दोस्तों,
मंज़िलों को यार अपना तुम बना दो साथियों।
मैदान में गर डट पडो, रण छोड़ बैरी भाग लें,
तुम अडिग हो ये हिमालय को दिखा दो साथियों;
डरना नहीं फितरत तुम्हारी और ना ही कांपना,
डर को भी अपने नाम से डरना सिखा दो साथियों।
मानकर श्रम-स्वेद को ही अपने मस्तक का मुकुट,
मिट्टी में डालो हाथ तो सोना उगा दो साथियों;
न रहने अब पाये कोई धरा बंजर कभी,
पत्थरों के भी हृदय में सुमन खिला दो साथियों।
भेद-भाव को दूर भगाकर समरसता फैलानी है,
भाव ये जन-जन के मन में तुम जगा दो साथियों;
तोड़ कर इस जाति, भाषा, धर्म की ज़ंजीर को,
मानवता को धर्म अपना तुम बना दो साथियों।
चीर सीना पर्वतों का गंगा बहा दो साथियों;
कांप उठे दश दिशायें एक ही हुंकार से,
भींच कर प्राणों को रणसिंघा बजा दो साथियों।
चल पड़ो तो कोई अड़चन राह में आए नहीं,
अड़चनों को राह से हटना सिखा दो साथियों;
कामयाबी ख़ुद-ब-ख़ुद चूमे क़दम ऐ दोस्तों,
मंज़िलों को यार अपना तुम बना दो साथियों।
मैदान में गर डट पडो, रण छोड़ बैरी भाग लें,
तुम अडिग हो ये हिमालय को दिखा दो साथियों;
डरना नहीं फितरत तुम्हारी और ना ही कांपना,
डर को भी अपने नाम से डरना सिखा दो साथियों।
मानकर श्रम-स्वेद को ही अपने मस्तक का मुकुट,
मिट्टी में डालो हाथ तो सोना उगा दो साथियों;
न रहने अब पाये कोई धरा बंजर कभी,
पत्थरों के भी हृदय में सुमन खिला दो साथियों।
भेद-भाव को दूर भगाकर समरसता फैलानी है,
भाव ये जन-जन के मन में तुम जगा दो साथियों;
तोड़ कर इस जाति, भाषा, धर्म की ज़ंजीर को,
मानवता को धर्म अपना तुम बना दो साथियों।
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